भागवत गीता के 15 अनमोल वचन | भागवत गीता ज्ञान (भाग चार )

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जय श्री कृष्णा मित्रों,

भागवत गीता , मुश्किल समय में धैर्य रखना हमारे जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण गुण है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जब सबकुछ हमारे खिलाफ प्रतीत होता है। ऐसे समय में धैर्य और सकारात्मक सोच बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। धैर्य हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है, साथ ही कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति भी देता है। यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि हर मुश्किल के बाद अच्छा समय अवश्य आता है।

मित्रों, इस संसार में भगवान की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसलिए, मैं आपको हृदय से शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ कि आप अत्यंत भाग्यशाली हैं, क्योंकि आपने भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से श्रीमद् भगवद् गीता के अनमोल विचारों को सुनने और समझने का निर्णय लिया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस संदेश को शांत मन से सुनने और अंत तक समझने के बाद आपके विचारों और जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आएगा।

जो भी व्यक्ति श्रीमद् भगवद् गीता की शरण में जाता है और भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए मार्गदर्शन को अपनाता है, वह अपने सभी दुखों से मुक्त होकर सफलता और आनंद प्राप्त करता है। मित्रों, यदि आपको जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या है, या आपकी कोई इच्छा अधूरी है, तो गीता के इन 60 अनमोल वचनों को ध्यानपूर्वक सुनें और समझें। यह वचन न केवल आपकी इच्छाएँ पूरी करेंगे, बल्कि हर मुश्किल को आसान बना देंगे और आपके सभी दुखों का निवारण करेंगे।

गीता का यह ज्ञान अमृत के समान है, जो न केवल हमारे विचारों में बल्कि हमारे जीवन में भी एक नई ऊर्जा का संचार करता है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जो भी इन वचनों को ध्यानपूर्वक सुनेगा और उन्हें अपनाएगा, उसे अपनी हर समस्या का समाधान मिलेगा और वह अपनी सभी इच्छाएँ पूरी कर सकेगा।

इसलिए, इस ज्ञानवर्धक यात्रा को पूरा ध्यान और मन से सुनें। इस लेखका एक भी विचार मिस न करें और इसे अंत तक अवश्य पढ़े । तो आइए, भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए इन 60 अनमोल वचनों की दिव्य यात्रा की शुरुआत क्रमसः भाग १ ,२, ३, और ४ पढ़े ।

जय श्री कृष्णा!

श्रीमद्भागवत गीता का 46वां अमूल्य वचन

यह है कि हमें बीते समय को भूलकर केवल वर्तमान में जीने की समझदारी अपनानी चाहिए। यदि हम अतीत के दुखों में जीते रहेंगे तो हम कभी भी खुश नहीं रह सकते। जो कुछ भी हमारे साथ हुआ, उसे सीख के रूप में ग्रहण करें और उसे अपने भविष्य को सुधारने के लिए प्रयोग करें। अतीत को बदलना हमारे हाथ में नहीं है, परंतु वर्तमान को बदलने की पूरी शक्ति हमारे पास है। जो लोग अतीत के दुखों में उलझकर रहते हैं, वे अपनी खुशी खो देते हैं और कभी आगे नहीं बढ़ पाते। इसलिए, आज में जीना शुरू करें और अपने वर्तमान को बेहतर बनाएं। केवल वही व्यक्ति सुखी रहेगा जो अपने वर्तमान में जीता है, जबकि अतीत में जीने वाला व्यक्ति हमेशा पीड़ा में रहेगा।

श्रीमद्भागवत गीता का 47वां अमूल्य वचन

कभी भी जीवन में नए शुरुआत के लिए पुराने को पूरी तरह से मिटाना पड़ता है। श्री कृष्ण ने कुंती से कहा था कि धर्म की वृद्धि के कारण महायुद्ध का आयोजन आवश्यक था, क्योंकि पुराने को नष्ट किए बिना नए युग की शुरुआत संभव नहीं थी। जैसे किसी पुराने और खंडहर हो चुके भवन को गिराकर नया निर्माण होता है, वैसे ही जीवन में भी जब कुछ नया करना हो तो पुराने विचारों और आदतों को छोड़ देना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता का 48वां अमूल्य वचन

जो लोग आपके सामने अपनापन दिखाते हैं और पीछे से आपको नुकसान पहुंचाते हैं, उनसे हमेशा दूर रहना चाहिए। चाणक्य ने कहा था कि ऐसे लोग उस घड़े जैसे होते हैं, जिनके मुंह में अमृत होता है, लेकिन भीतर जहर भरा होता है। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए और उन्हें अपनी जिंदगी से बाहर रखना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता का 49वां अमूल्य वचन

इस संसार में जो कुछ भी घटित होता है, चाहे अच्छा हो या बुरा, वह बिना कारण नहीं होता। समय के साथ हमें यह समझ में आता है कि जो हुआ, वह हमारे अच्छे के लिए ही था। जैसे एक महिला के बच्चे की अंगुली एक दुर्घटना में कट जाती है और बाद में वह एहसास करती है कि उसी कारण उसका बच्चा एक राक्षस के हाथों नहीं मारा गया। जीवन में हमें यही समझना चाहिए कि हर घटना किसी कारण से घटित होती है और हमें इसे स्वीकार करके आगे बढ़ना चाहिए।

श्रीमद्भागवत गीता का 50वां अमूल्य वचन

कभी भी किसी का भला करके एहसान न जताएं, क्योंकि ऐसा करने से वह उपकार कम और एक बोझ की तरह लगता है। अपनी मदद के काम को किसी स्वार्थ के बिना करें। ज्ञान से बुद्धि की श्रेष्ठता बढ़ती है, इसलिए हमें ज्ञान अर्जित करते रहना चाहिए और इसे दूसरों के साथ साझा करना चाहिए। जो व्यक्ति बिना फल की इच्छा के कार्य करता है, वही अपने जीवन को सुखमय और संतुष्टिपूर्ण बना सकता है। “मैं” और “मेरा” की भावना से बाहर निकलकर काम करना ही असली शांति का रास्ता है।

श्रीमद्भागवत गीता का 51वां अमूल्य वचन

जीवन में संतोष रखने वाला ही सच्चा सुखी होता है। जो हमें नहीं मिलता, उसके बारे में दुख या शक करने के बजाय, हमें यह समझना चाहिए कि जो कुछ भी ईश्वर ने हमें दिया है, उसका आनंद लें। एक बार एक व्यक्ति सागर के किनारे घूम रहा था, और उसने चांदी का एक डंडा देखा, जो लहरों के साथ किनारे पर आया था। उसने खुशी-खुशी उस डंडे को उठाया और चलने लगा। कुछ देर बाद, जब वह सागर में नहाने गया, तो डंडा लहरों के साथ बह गया। वह दुखी हो गया और रोने लगा। पास से एक संत गुजर रहे थे, जिन्होंने उसे दुखी देखा और पूछा कि क्यों रो रहा है। आदमी ने बताया कि उसका चांदी का डंडा बह गया। संत ने पूछा, “जब वह तुम्हारा था ही नहीं, तो फिर दुख क्यों?” इस पर व्यक्ति चुप हो गया। कभी-कभी, खुशियां अनायास मिलती हैं और हमें उनकी सराहना का समय नहीं मिलता, क्योंकि हम हमेशा उन चीजों की चिंता करते रहते हैं जो हमारे पास नहीं हैं। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है, “तुमने क्या लाया था जो खो दिया? तुम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाओगे।”

श्रीमद्भागवत गीता का 52वां अमूल्य वचन

क्रोध मनुष्य के जीवन को बर्बाद कर देता है। क्रोध करने वाला व्यक्ति न केवल दूसरों से दूर हो जाता है, बल्कि अपने रिश्तों को भी खो देता है। जो व्यक्ति अपने क्रोध पर काबू नहीं पा सकता, वह जीवन में कुछ भी नहीं संभाल सकता। क्रोध में प्रतिक्रिया देना यह दर्शाता है कि हमें ईश्वर के बनाये नियमों पर विश्वास नहीं है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, “क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है, और मति के नष्ट होने से बुद्धि भी नष्ट हो जाती है। जब बुद्धि नष्ट होती है, तो व्यक्ति अपना ही नाश कर बैठता है।”

श्रीमद्भागवत गीता का 53वां अमूल्य वचन

व्यक्ति को सुख और दुख दोनों परिस्थितियों को समान रूप से स्वीकार करना चाहिए। जैसा हम खुशियों का स्वागत करते हैं, वैसे ही दुख को भी स्वीकार करें। जीवन में सुख और दुख दोनों का एक समान स्थान है। महाभारत के युद्ध के बाद, जब श्री कृष्ण द्वारिका लौटने लगे, पांडवों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, क्योंकि वे उन्हें अपना हिस्सा मानते थे। लेकिन श्री कृष्ण को जाना था। उन्होंने कुंती से मिलने के बाद कहा, “आज तक आपने मेरे लिए कुछ नहीं मांगा, अगर कुछ मांगना है तो मांगिए।” कुंती ने रोते हुए कहा, “मुझे दुख दे दो, क्योंकि दुख में तुम्हारी याद रहती है और तुम्हारी पूजा कर सकती हूं।” श्री कृष्ण ने कहा, “जो व्यक्ति न हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक मनाता है और जो शुभ और अशुभ कर्मों का त्याग करता है, वही मुझे प्रिय है।”

श्रीमद्भागवत गीता का 54वां अमूल्य वचन

बहुत ज्यादा मीठा बोलने वाले और अधिक तारीफ करने वालों से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि वे तब ही मीठा बोलते हैं जब उन्हें आपसे कुछ फायदा लेना होता है। किसी की तारीफ बिना किसी स्वार्थ के नहीं होती। अगर कोई आपकी तारीफ करता है, तो समझ लीजिए कि आपको उसके लिए कुछ चुकाना पड़ सकता है। इसलिए, जो लोग बहुत ज्यादा मीठा बोलते हैं या आपकी तारीफ करते हैं, उनसे थोड़ी दूरी बनाए रखें।

श्रीमद्भागवत गीता का 55वां अमूल्य वचन

अपने मन को शांत रखना सीखो, क्योंकि अशांत मन सिर्फ दुख ही देता है, जबकि शांत मन प्रेम और आनंद से भर देता है। दुख और सुख केवल मन के शांत या अशांत होने के परिणाम होते हैं। अशांत मन दुख को जन्म देता है, और शांत मन परम आनंद का अनुभव कराता है। शंकाओं से बचो, क्योंकि ये गलतफहमियों के पहाड़ खड़े कर देती हैं, जो जीवन का सुख और चैन छीन लेती हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि जो अपना मन वश में रखता है, उसका मन मित्र बन जाता है, लेकिन जो अपने मन को वश में नहीं रख पाता, उसका मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।

श्रीमद्भागवत गीता का 56वां अमूल्य वचन

आपकी सफलता या असफलता आपकी संगत पर निर्भर करती है। कहते हैं, “जैसी संगत, वैसी रंगत।” अगर आपकी संगत बुरी है, तो आप बर्बाद हो सकते हैं, लेकिन अगर आप अच्छे लोगों के साथ रहते हैं और उनकी बातों को अपनाते हैं, तो आप निश्चित रूप से बेहतर हो जाएंगे। जैसा शकुनी का साथ कौरवों का था, वैसे ही कृष्ण का साथ पांडवों का था। गलत संगत से बचना चाहिए, क्योंकि बुरे लोगों के संग में रहने से कभी खुशी नहीं मिल सकती। बुरे लोगों की संगत में रहने से कभी-कभी हमें उनके कर्मों का परिणाम भुगतना पड़ता है।

श्रीमद्भागवत गीता का 57वां अमूल्य वचन

अपने काम में पारंगत बनें और उसका पूरा ज्ञान हासिल करें। अधूरा ज्ञान सबसे खतरनाक होता है, और इसका उदाहरण अभिमन्यु की मृत्यु में देखा जा सकता है। श्री कृष्ण कहते हैं कि अर्जुन, तुम एक सच्चे गुरु से ज्ञान प्राप्त करो और विनम्रता से उनकी शरण में जाओ। जैसे जलते दीपक की छोटी सी रोशनी से अंधकार दूर हो जाता है, वैसे ही ज्ञान से अज्ञानता का अंधकार समाप्त हो जाता है।

श्रीमद्भागवत गीता का 58वां अमूल्य वचन

फल की इच्छा से काम करने वाला कभी संतुष्ट नहीं रह सकता, क्योंकि उसकी लालसा हमेशा बढ़ती रहती है। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि बिना किसी फल की इच्छा के काम करो, और ईश्वर पर भरोसा रखो। जब आप निस्वार्थ भाव से काम करते हैं, तो जीवन में सुख और संतुष्टि मिलती है। कर्म का फल हमेशा मिलेगा, चाहे अच्छा हो या बुरा, लेकिन समय पर मिलेगा। इसलिए, बिना चिंता किए अपने कर्म को जारी रखें।

श्रीमद्भागवत गीता का 59वां अमूल्य वचन

योग का मतलब सिर्फ शारीरिक साधना नहीं, बल्कि सही समझ और एकाग्रता से कार्य करना है। कई लोग मेहनत तो करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिलती। श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें योग में स्थित होकर, पूरी एकाग्रता से काम करना चाहिए, जिससे हमें सही और गलत में अंतर समझ में आता है। सही मार्ग अपनाकर ही जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है।

श्रीमद्भागवत गीता का 60वां अमूल्य वचन

जो लोग गीता की शिक्षाओं पर विश्वास नहीं करते, उनका जीवन सुख और दुख के चक्र में फंसा रहता है। उनका जीवन किसी न किसी दुख और खुशी के बीच झूलता रहता है। लेकिन जो लोग गीता की शिक्षाओं को अपने जीवन में अपनाते हैं, वे मानसिक रूप से मजबूत होते हैं और जीवन की समस्याओं का सामना शांतिपूर्वक करते हैं। श्री कृष्ण ने गीता में यह सिखाया है कि संतुलन और धैर्य के साथ हर परिस्थिति में जीने की कला को अपनाया जाए, जिससे जीवन में शांति और स्थिरता बनी रहे। जीवन का उद्देश्य परोपकार और भक्ति करना है, और हमेशा निस्वार्थ भावना से दूसरों की मदद करनी चाहिए।

जीवन में प्रेम और संतुष्टि

प्रेम केवल उन्हीं से करें जो आपकी भावनाओं की कद्र करें, क्योंकि प्रेम पीड़ा नहीं देता, लेकिन अगर आपकी भावनाओं की कद्र नहीं की जाती, तो यह पीड़ा में बदल सकती है। प्रेम तभी सार्थक है जब वह दोनों तरफ से समझा और अपनाया जाए।

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