भागवत गीता के 60 अनमोल वचन | भागवत गीता ज्ञान (भाग दुइ)

जय श्री कृष्णा मित्रों,

भागवत गीता के 60 अनमोल वचन, भागवत गीता , मुश्किल समय में धैर्य रखना हमारे जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण गुण है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जब सबकुछ हमारे खिलाफ प्रतीत होता है। ऐसे समय में धैर्य और सकारात्मक सोच बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। धैर्य हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है, साथ ही कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति भी देता है। यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि हर मुश्किल के बाद अच्छा समय अवश्य आता है।

मित्रों, इस संसार में भगवान की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसलिए, मैं आपको हृदय से शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ कि आप अत्यंत भाग्यशाली हैं, क्योंकि आपने भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से श्रीमद् भगवद् गीता के अनमोल विचारों को सुनने और समझने का निर्णय लिया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस संदेश को शांत मन से सुनने और अंत तक समझने के बाद आपके विचारों और जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आएगा।

जो भी व्यक्ति श्रीमद् भगवद् गीता की शरण में जाता है और भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए मार्गदर्शन को अपनाता है, वह अपने सभी दुखों से मुक्त होकर सफलता और आनंद प्राप्त करता है। मित्रों, यदि आपको जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या है, या आपकी कोई इच्छा अधूरी है, तो गीता के इन 60 अनमोल वचनों को ध्यानपूर्वक सुनें और समझें। यह वचन न केवल आपकी इच्छाएँ पूरी करेंगे, बल्कि हर मुश्किल को आसान बना देंगे और आपके सभी दुखों का निवारण करेंगे।

गीता का यह ज्ञान अमृत के समान है, जो न केवल हमारे विचारों में बल्कि हमारे जीवन में भी एक नई ऊर्जा का संचार करता है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जो भी इन वचनों को ध्यानपूर्वक सुनेगा और उन्हें अपनाएगा, उसे अपनी हर समस्या का समाधान मिलेगा और वह अपनी सभी इच्छाएँ पूरी कर सकेगा।

इसलिए, इस ज्ञानवर्धक यात्रा को पूरा ध्यान और मन से सुनें। इस लेखका एक भी विचार मिस न करें और इसे अंत तक अवश्य पढ़े । तो आइए, भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए इन 60 अनमोल वचनों की दिव्य यात्रा की शुरुआत क्रमसः भाग १ ,२, ३, और ४ पढ़े ।

जय श्री कृष्णा!

Table of Contents

भागवत गीता के 60 अनमोल वचन

श्रीमद्भगवत गीता का 16वां अनमोल वचन हमें सिखाता है कि असली सफलता वही है, जब इंसान भीतर से खुश और संतुष्ट हो। बाहर की खुशी दिखावटी होती है, जबकि अंदर का संतोष ही वास्तविक खुशी है।

आज लोग धन, गाड़ी, और भौतिक संसाधनों की दौड़ में लगे रहते हैं, यह सोचकर कि यही उन्हें खुशी देंगे। लेकिन ये खुशी क्षणिक होती है। एक इच्छा पूरी होते ही नई इच्छाएं जन्म ले लेती हैं, जिससे मन अशांत रहता है।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, सच्ची खुशी तभी मिलती है जब इंसान अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखे और उन्हें त्यागते हुए आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़े। जो व्यक्ति सुख-दुख को समान दृष्टि से देखता है और ईश्वर की भक्ति करता है, वह भीतर से आनंद और शांति को प्राप्त करता है। यही असली सफलता है।

श्रीमद्भगवत गीता का 17 वां अनमोल वचन हमें सिखाता है कि मनुष्य को हमेशा अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि इस बात पर कि लोग क्या कहेंगे या क्या सोचेंगे। जब हम दूसरों की राय की परवाह करते हैं, तो अपने कार्य में पूरी तरह मन नहीं लगा पाते।

एक बार की बात है, एक फलवाले ने अपने दुकान के पीछे एक बोर्ड लगाया, जिस पर लिखा था, “यहां ताजा फल बेचे जाते हैं।” एक ग्राहक ने कहा, “तुम यहां बैठे हो, यह तो साफ दिख रहा है, ‘यहां’ शब्द हटा दो।” फलवाले ने ऐसा ही किया। अब बचा, “ताजा फल बेचे जाते हैं।” दूसरे ग्राहक ने कहा, “ताजा तो सभी जानते हैं, यह शब्द भी मिटा दो।” फलवाले ने ‘ताजा’ भी हटा दिया।

इसके बाद बोर्ड पर बचा, “फल बेचे जाते हैं।” तीसरे ग्राहक ने कहा, “तुम्हें फल बेचते देख रहे हैं, इसे लिखने की क्या जरूरत?” फलवाले ने ‘फल’ भी हटा दिया। अब बोर्ड पर बचा, “बेचे जाते हैं।” फिर चौथे ग्राहक ने कहा, “यह तो जाहिर है कि तुम बेच रहे हो, इसे भी हटा दो।” फलवाले ने आखिरी शब्द भी मिटा दिया, और बोर्ड खाली हो गया।

तब एक और व्यक्ति आया और बोला, “पागल हो गए हो? बोर्ड पर कुछ लिखा क्यों नहीं है!”

इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि दुनिया में हर किसी की अपनी राय होती है। लोग दूसरों को सलाह देने में माहिर होते हैं, लेकिन अगर हम हर किसी की बात मानने लगें, तो अपनी पहचान और निर्णय खो बैठेंगे।

इसलिए, दूसरों की राय सुनें, पर अपनी सोच और निर्णय पर भरोसा रखें। हार और गलतियां जीवन का हिस्सा हैं, इन्हीं से अनुभव और सफलता मिलती है। अगर आप हर वक्त यह सोचते रहेंगे कि लोग क्या कहेंगे, तो आप कभी अपने उद्देश्य को नहीं पा सकेंगे।

यही वजह है कि कहा गया है, “सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग।”

श्रीमद्भगवत गीता का 18वां अनमोल वचन हमें सिखाता है कि मित्रता हमेशा सोच-समझकर करनी चाहिए और एक बार जिसे अपना मित्र बनाएं, उसका साथ ईमानदारी से निभाना चाहिए। महाभारत में कई ऐसे उदाहरण हैं, जहां मित्रों ने विश्वासघात किया या समय के साथ अपना पक्ष बदल लिया। शल्य और युयुत्सु इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

कई बार, दुश्मन दोस्त के भेष में हमारे साथ रहते हैं और हमें नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, कुछ ऐसे मित्र भी होते हैं, जो दोनों पक्षों के साथ रहते हैं, जैसे भीष्म, द्रोण, और विदुर। हालांकि, युद्ध के अंत में उन्होंने पांडवों का ही साथ दिया।

सच्चे और निस्वार्थ मित्र आपका जीवन बदल सकते हैं। पांडवों के पास भगवान श्रीकृष्ण जैसे मार्गदर्शक थे, जबकि कौरवों के पास कर्ण जैसा महान योद्धा। दोनों ने बिना शर्त अपनी मित्रता निभाई। लेकिन दुर्योधन ने कर्ण की सलाह को नज़रअंदाज किया और उसे घटोत्कच के खिलाफ इंद्र के अमोघ अस्त्र का उपयोग करने के लिए मजबूर किया। यदि यह अस्त्र अर्जुन के खिलाफ बचा होता, तो युद्ध का परिणाम कुछ और हो सकता था।

इसलिए, मित्रता सोच-समझकर करें और उसे निभाने में ईमानदारी का परिचय दें। सही मित्र ही आपका सच्चा सहारा बनते हैं।


श्रीमद्भगवत गीता का 19वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि जीवन में किसी भी चीज़ की अति नहीं करनी चाहिए। न प्रेम हद से ज्यादा होना चाहिए, न नफरत। हद से ज्यादा मीठा भी हानिकारक होता है, और हद से ज्यादा कड़वा भी।

अत्यधिक खाना शरीर को बीमार कर सकता है, और जरूरत से ज्यादा भूखा रहना भी नुकसानदायक है। हद से ज्यादा आराम से आलस्य आता है, जबकि ज्यादा जागने से शरीर कमजोर हो जाता है।

जीवन में संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। जब आप संतुलन खो देते हैं, तो जीवन में छोटी या बड़ी समस्याएं जरूर आती हैं। श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि संतुलित जीवन ही सुख और शांति का आधार है।

भागवत गीता के 60 अनमोल वचन | भागवत गीता ज्ञान (भाग दुइ)

श्रीमद्भगवत गीता का 20वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है।

जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे। यदि आपने अपने माता-पिता की सेवा की है, तो आपकी संतान भी आपके बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी। लेकिन यदि आपने बुरे कर्म किए हैं, तो उसका परिणाम भी आपको भुगतना ही पड़ेगा।

एक दिन की बात है, एक गरीब आदमी नदी के किनारे मछली पकड़ रहा था। उसने बड़ी मेहनत से एक ताजी मछली पकड़ी। पास ही एक सेठ भी मछली पकड़ रहा था, लेकिन अनुभव की कमी के कारण उसके हाथ कोई मछली नहीं लग रही थी। जैसे ही सेठ ने गरीब आदमी के हाथ में मछली देखी, उसका मन लालच से भर गया। उसने गरीब आदमी से मछली छीन ली।

गरीब आदमी ने कहा, “यह मछली मैंने पकड़ी है, आप इसे क्यों ले रहे हैं?” सेठ ने अपनी ताकत दिखाते हुए कहा, “दूसरी पकड़ लेना, यह अब मेरी है,” और मछली लेकर चल दिया। लेकिन मछली अभी जिंदा थी और तड़प रही थी। उसने गुस्से में सेठ के अंगूठे में काट लिया और पानी में कूद गई।

सेठ के अंगूठे में गहरा घाव हो गया और खून बहने लगा। वह डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने पट्टी बांधी और तीन दिन बाद वापस आने को कहा। लेकिन घाव ठीक होने की बजाय और गहरा हो गया। डॉक्टर ने कहा, “अंगूठा काटना पड़ेगा, वरना हाथ खराब हो जाएगा।” मजबूर होकर सेठ ने अंगूठा कटवा दिया।

कुछ दिन बाद, घाव और खराब हो गया। डॉक्टर ने कहा, “अब कलाई काटनी पड़ेगी, वरना पूरा हाथ जाएगा।” सेठ ने कलाई भी कटवा दी। इसके बाद भी समस्या बनी रही, और धीरे-धीरे सेठ को अपना पूरा हाथ कटवाना पड़ा।

सेठ का एक मित्र उससे मिलने आया और पूछा, “तूने ऐसा क्या किया, जिसके कारण यह सब हो रहा है?” सेठ ने कहा, “एक गलती हुई थी। मैंने एक गरीब आदमी की मेहनत से पकड़ी मछली छीन ली थी।”

मित्र ने कहा, “यह जरूर उसी गरीब आदमी की बद्दुआ का असर है। जल्दी से जाकर उससे माफी मांगो।” सेठ ने गरीब आदमी को ढूंढा, उसके पैरों में गिरकर माफी मांगी और पूछा, “क्या तुमने मुझे श्राप दिया था?”

गरीब आदमी ने हाथ जोड़कर कहा, “मैंने तुम्हें कोई श्राप नहीं दिया। मैंने तो बस भगवान से कहा था कि उसने मेरी मेहनत छीन ली है, अब तू ही उसे अपनी ताकत दिखा दे।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि बुरे कर्म का फल भी बुरा ही होता है। कर्मों का फल हमें वैसे ही ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है। इसीलिए, हमेशा अच्छे कर्म करें, क्योंकि कर्मों से कोई नहीं बच सकता।

श्रीमद्भगवत गीता का 21वां अनमोल वचन हमें सिखाता है कि हम इस दुनिया में खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाएंगे।

जो कुछ भी आज आपका है, वह कल किसी और का होगा। इसलिए जो भी कार्य करें, उसे भगवान को अर्पित करें। जीवन में सबसे बड़ा उपहार स्वास्थ्य है, सबसे बड़ा धन संतोष है, और सबसे सच्चा संबंध वफादारी से बनता है।

यदि आप छल करते हैं, तो वह छल एक दिन लौटकर आपके पास जरूर आएगा, आज नहीं तो कल। जीवन को सच्चाई से जिएं, हर पल सुकून मिलेगा। उपवास केवल खाने का नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें अपने लालच, घृणा, चुगली, क्रोध और गंदे विचारों से भी उपवास रखना चाहिए। यदि मन का संकल्प और शरीर का परिश्रम पूरी निष्ठा से किसी काम में लगाए जाएं, तो सफलता निश्चित होती है।

भाग्य के भरोसे बैठने के बजाय, कर्मों का तूफ़ान पैदा करें। रास्ते खुद-ब-खुद खुल जाएंगे। क्रोध की अवस्था में भ्रम उत्पन्न होता है, और भ्रम से बुद्धि का नाश होता है। जब बुद्धि नष्ट हो जाती है, तो पतन निश्चित है। जैसे अपनी सीमा तोड़ने वाला पानी बाढ़ लाता है, वैसे ही जब हमारी वाणी मर्यादा तोड़ती है, तो विनाश तय होता है।

किसी को धोखा देना एक प्रकार का कर्ज है, जो किसी न किसी दिन लौटकर आपको ही भुगतना पड़ेगा। कलयुग में सतर्क रहना जरूरी है। मौसम और इंसान दोनों पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे कभी भी बदल सकते हैं।


श्रीमद्भगवत गीता का 22वां अनमोल वचन हमें यह सिखाता है कि हमारे सबसे करीबी लोग, हमारे रिश्तेदार ही, अक्सर हमारी सफलता से सबसे ज्यादा जलते हैं।

बाहर वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी जिंदगी में क्या चल रहा है। लेकिन आपके रिश्तेदार आपकी हर गतिविधि पर नजर रखते हैं।

बाहर से ये लोग आपको प्रेरित करने के लिए कहेंगे, “आगे बढ़ो, सफल हो जाओ,” लेकिन जब आप अपनी सफलता की खबर उन्हें सुनाएंगे, तो उनकी खुशी केवल दिखावटी होगी। वास्तव में, आपकी तरक्की उन्हें बर्दाश्त नहीं होती।

कई बार ऐसा होता है कि दुनिया आपके काम की तारीफ करती है, लेकिन आपके घर में ही आपकी कदर नहीं होती। महाभारत इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पांडवों की हर सफलता दुर्योधन के लिए असहनीय थी। जब भी पांडव किसी काम में सफल होते थे, दुर्योधन उन्हें नीचा दिखाने और दुखी करने का हरसंभव प्रयास करता था। इसी जलन ने महाभारत जैसे विनाशकारी युद्ध को जन्म दिया, जिसमें अनगिनत लोग मारे गए।

बाहर वालों को आपके जीवन से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन आपके करीबी रिश्तेदार, जो बाहर से बहुत मीठा बोलते हैं, अक्सर आपकी खुशी से असंतुष्ट होते हैं। यही लोग सबसे खतरनाक होते हैं, क्योंकि ये दिखावा करते हैं कि वे आपके अपने हैं, लेकिन सच्चाई कुछ और होती है।

इसलिए, किसी को भी अपना समझने से पहले परख लें कि वह वास्तव में आपका शुभचिंतक है या केवल अपनेपन का दिखावा कर रहा है। जीवन में रिश्ते चुनते समय सतर्क रहें और ईमानदारी से जीना ही आपकी सबसे बड़ी ताकत बनेगी।

श्रीमद्भगवत गीता का 23वां अनमोल वचन हमें सिखाता है कि समय का महत्व समझे बिना जीवन व्यर्थ हो जाता है।

समय ही जीवन की असली पूंजी है, और जो व्यक्ति इसे निरर्थक कार्यों में बर्बाद करता है, वह अपने जीवन में कुछ भी सार्थक प्राप्त नहीं कर सकता। यदि आप जीवन में सफल होना चाहते हैं, तो समय की कद्र करना अनिवार्य है। समय का सही उपयोग आपको न केवल सफलता की ओर ले जाएगा, बल्कि आपके जीवन को भी सही दिशा में आगे बढ़ाएगा।

समय एक बार बीतने पर वापस नहीं आता। इसलिए, इसे सही ढंग से उपयोग करते हुए अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए। समय का सम्मान करने वाला व्यक्ति ही अपने जीवन को मूल्यवान बना सकता है।


श्रीमद्भगवत गीता का 24वां अनमोल वचन यह है कि डर भविष्य के दुखों का समाधान नहीं करता।

डर केवल चिंताओं को बढ़ाता है, जो हमारे सुख और चैन को छीन लेता है। हमें यह समझना चाहिए कि डर का कोई आधार नहीं है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि तुम केवल आत्मा हो, जो अजर और अमर है। शरीर मात्र एक साधन है, और इसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। जब किसी समस्या का शांतिपूर्ण समाधान संभव न हो, तो संघर्ष से पीछे हटना कायरता है।

अर्जुन युद्ध से घबरा रहे थे, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें यह सिखाया कि आत्मा न मरती है, न मारती है। सभी व्यक्ति केवल निमित्त मात्र हैं। इसलिए, किसी भी परिस्थिति में हमें डरना नहीं चाहिए, बल्कि अपने कर्तव्यों को निर्भीकता और निष्ठा के साथ पूरा करना चाहिए।


श्रीमद्भगवत गीता का 25वां अनमोल वचन यह है कि जिसे आप सबसे अधिक महत्व देंगे, वही अक्सर आपको महत्व नहीं देगा।

आपने ध्यान दिया होगा कि आपको अपमानित करने वाले वही लोग होते हैं, जिन्हें आप सबसे अधिक सम्मान देते हैं।

दूसरों का सम्मान करना अच्छी बात है, लेकिन अत्यधिक सम्मान अक्सर आपकी ही इज्जत को कम कर देता है। किसी को भी इतना महत्व न दें कि आप उसके लिए अपनी पहचान खो दें।

जैसे ही आप किसी को अपना सब कुछ मान लेते हैं, वह व्यक्ति आपको महत्व देना बंद कर देता है। इसलिए, सम्मान उतना ही दें, जितना वह व्यक्ति सह सके। हद से ज्यादा सम्मान देना, आपके अपमान का कारण बन सकता है।


श्रीमद्भगवत गीता का 26वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि मुश्किल समय में जो आपका साथ दे, वही आपका अपना है।

बहुत से लोग अपनेपन का दिखावा करते हैं, लेकिन सच्चाई मुश्किल वक्त में ही सामने आती है।

लोग अक्सर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि “हम हर सुख-दुख में तुम्हारे साथ हैं,” लेकिन जब सच में तकलीफ आती है, तो वही लोग सबसे पहले भाग जाते हैं।

लोग आपसे तभी जुड़ते हैं, जब उन्हें आपसे कुछ फायदा हो। जैसे ही उन्हें लगता है कि उन्हें आपकी मदद करनी पड़ेगी और उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा, वे दूर भाग जाते हैं।

इसलिए, सच्चे अपने वही होते हैं, जो आपके कठिन समय में आपके साथ खड़े रहते हैं। इस दुनिया में हर कोई अपने स्वार्थ के लिए जीता है। “अपना” केवल कहने से कोई अपना नहीं बन जाता; अपना वही होता है, जो आपके दुख के समय में आपके साथ खड़ा हो।

श्रीमद्भगवत गीता का 27वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि संसार के मोह और प्रेम से जितना अधिक जुड़ोगे, उतना ही दुख और पीड़ा का अनुभव करोगे।

आपके सारे दुखों का मुख्य कारण यह है कि आप किसी को “अपना” मानते हैं। यदि आप गौर करें, तो आपकी सारी तकलीफें, चिंताएं, और दुःख वहीं से उपजते हैं, जहां आप किसी को या किसी वस्तु को अपना मान लेते हैं। जैसे ही आप किसी इंसान, वस्तु, रिश्ते या कार्य को “मेरा” कहकर स्वीकार करते हैं, दुखों का सिलसिला शुरू हो जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया था कि यदि आप दुखों और निराशाओं से मुक्ति चाहते हैं, तो संसार के मोह से ऊपर उठें। मेरी भक्ति करें और मुझसे प्रेम करें। मैं आपको इस संसार के समस्त दुखों से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करूंगा। यह संसार अस्थायी है, और इसकी आसक्ति केवल पीड़ा का कारण बनती है।


श्रीमद्भगवत गीता का 28वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि मनुष्य को कभी भी बदले और घृणा की भावना अपने मन में नहीं रखनी चाहिए। न ही अपने भाग्य को कोसना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से वह केवल अपना जीवन व्यर्थ कर देता है।

दानवीर कर्ण की कहानी इसका एक आदर्श उदाहरण है। एक बार कर्ण ने भगवान श्रीकृष्ण से अपनी पीड़ा साझा की। कर्ण ने कहा,
“हे कृष्ण, जब मेरा जन्म हुआ, तब मेरी मां ने मुझे त्याग दिया। इसमें मेरा क्या अपराध था? द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना कर दिया क्योंकि मैं क्षत्रिय नहीं था, इसमें भी मेरा क्या दोष? द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित किया गया क्योंकि मैं राजपरिवार से नहीं था। भला इन सब में मेरा अपराध क्या था?”

यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और बोले,
“हे कर्ण, जब मेरा जन्म हुआ, तब मैं कारागार में था। जन्म लेते ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मुझे अपने माता-पिता से अलग होना पड़ा। मेरा बचपन गरीबी में बीता। मैंने गायों का गोबर अपने हाथों से उठाया। बचपन में मुझ पर प्राणघातक हमले हुए। मेरे मामा ने मुझे अपना सबसे बड़ा शत्रु मान लिया।

मुझे न तो शिक्षा मिली, न ही राजमहल, न ही गुरुकुल। लेकिन मैंने कभी अपने भाग्य को नहीं कोसा। मैंने किसी के प्रति घृणा या बदले की भावना नहीं रखी। जीवन में चुनौतियां और अपमान आए, लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं कि कितनी बार अपमानित होना पड़ा। महत्वपूर्ण यह है कि उन चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए।”

महाभारत में कर्ण के जीवन की सीख:
कर्ण के जीवन में चुनौतियां थीं, लेकिन उनकी घृणा और बदले की भावना ने उन्हें महान बनने से रोक दिया। उन्होंने अपनी शिक्षा और शक्ति का उपयोग समाज की सेवा के बजाय, समाज से बदला लेने के लिए किया। घृणा से किया गया कोई भी कार्य समाज का भला नहीं कर सकता।

यदि कर्ण ने अपनी ऊर्जा समाज की भलाई में लगाई होती, तो वह न केवल खुद महान बनते, बल्कि समाज का उत्थान भी कर सकते थे। लेकिन उनकी बदले की भावना ने न केवल उन्हें, बल्कि उनके आस-पास के लोगों को भी नुकसान पहुंचाया।


इस वचन का सार यह है:
घृणा और बदले की भावना केवल विनाश का कारण बनती है। इसके बजाय, हमें परिस्थितियों को सुधारने और समाज के हित में कार्य करने की भावना रखनी चाहिए। जो परिवर्तन सबके भले के लिए हो, वही सार्थक है। यही जीवन का सही मार्ग है, और इसी पर चलकर हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं।

श्रीमद् भगवद् गीता का 29वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए।

महाभारत की कथा में दुर्योधन ने बार-बार षड्यंत्र रचकर पांडवों को समाप्त करने की कोशिश की। उसने उन्हें जलाकर मारने का प्रयास तक किया। पांडव, जो हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते थे, बार-बार दुर्योधन की चालों में फंसते रहे। इसका कारण यह था कि वे दुर्योधन को अपना भाई मानते थे और उस पर भरोसा करते थे। लेकिन दुर्योधन, जिसे वे अपना सगा समझते थे, उनकी मृत्यु की साजिश कर रहा था।

हालांकि, भगवान श्री कृष्ण ने हर बार पांडवों की रक्षा की। लेकिन यह घटना हमें एक गहरी शिक्षा देती है—किसी पर भी भरोसा करते समय विवेक और सतर्कता बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। केवल रिश्तों, भावनाओं, या दिखावे के आधार पर किसी पर पूरी तरह भरोसा करना खतरनाक साबित हो सकता है।

यह शिक्षा हमें सतर्कता और विवेक की महत्ता का बोध कराती है। भरोसा करना जरूरी है, क्योंकि यह किसी भी संबंध की नींव होती है। लेकिन इसके साथ सजगता बनाए रखना भी उतना ही आवश्यक है, ताकि कोई हमें छल-कपट से धोखा न दे सके।

इस वचन का सार यही है कि हमें किसी के प्रति विश्वास जताते समय सच्चाई को समझना चाहिए और आंखें खुली रखनी चाहिए। चाहे वह संबंध कितना भी नजदीकी क्यों न हो, विवेक और सतर्कता के बिना किया गया भरोसा कभी-कभी हमें भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

श्रीमद्भगवत गीता का 30वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि आप जैसा अन्न ग्रहण करते हैं, वैसा ही आपका मन, बुद्धि, आचरण और कर्म बनता है।

यदि आप सात्विक भोजन ग्रहण करेंगे, तो आपका मन भी सात्विक होगा, आपकी सोच सकारात्मक होगी, और आपका आचरण भी शुद्ध एवं शांतिपूर्ण होगा। लेकिन यदि आपका भोजन राजसिक या तामसिक होगा, तो उसका प्रभाव आपकी प्रवृत्तियों और व्यवहार पर भी पड़ेगा।

श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में तीन प्रकार के आहारों का वर्णन किया है:

  1. सात्विक भोजन:
    यह भोजन पवित्र, स्वास्थ्यवर्धक, और ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है। सात्विक भोजन करने से मन शांत, प्रसन्न और स्थिर रहता है। यह भोजन सुख, संतोष और शांति लाने में सहायक होता है।
  2. राजसिक भोजन:
    यह भोजन अधिक मसालेदार, तीखा, खट्टा या भारी होता है। राजसिक भोजन से व्यक्ति के व्यवहार में क्रोध, अहंकार और अस्थिरता बढ़ती है। यह तात्कालिक संतोष तो देता है, लेकिन दीर्घकाल में अशांति का कारण बनता है।
  3. तामसिक भोजन:
    यह बासी, खराब, या अधिक तला-भुना भोजन होता है। तामसिक भोजन से व्यक्ति के मन में काम, वासना, आलस्य और नकारात्मक विचारों की अधिकता होती है। इसका परिणाम जीवन में दुख, चिंता और निराशा के रूप में सामने आता है।

इस वचन का निचोड़ यह है:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि भोजन केवल शरीर को पोषण देने का साधन नहीं है, बल्कि यह आपके मन, विचार और कर्मों पर गहरा प्रभाव डालता है। जो व्यक्ति सात्विक भोजन करता है, वह जीवन में सुख, शांति और संतोष का अनुभव करता है। इसके विपरीत, राजसिक और तामसिक भोजन आपको अशांत, क्रोधित और नकारात्मक बनाते हैं।

इसलिए हमें अपने भोजन का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। भोजन ऐसा होना चाहिए जो न केवल शरीर, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध एवं संतुलित बनाए। सात्विक भोजन का अभ्यास जीवन को सही दिशा में ले जाता है और आंतरिक शांति प्रदान करता है

You May Read Also:

Leave a Comment

Translate »
Senior Living Operators Pivoting for Growth Health Insurance for Seniors Above 60 Anemia in Aging: Symptoms, Causes & Questions