भागवत गीता के 15 अनमोल वचन | भागवत गीता ज्ञान (भाग तीन )

जय श्री कृष्णा मित्रों,

भागवत गीता , मुश्किल समय में धैर्य रखना हमारे जीवन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण गुण है। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं, जब सबकुछ हमारे खिलाफ प्रतीत होता है। ऐसे समय में धैर्य और सकारात्मक सोच बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। धैर्य हमें मानसिक स्थिरता और शांति प्रदान करता है, साथ ही कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति भी देता है। यह हमें यह विश्वास दिलाता है कि हर मुश्किल के बाद अच्छा समय अवश्य आता है।

मित्रों, इस संसार में भगवान की इच्छा के बिना कुछ भी संभव नहीं है। इसलिए, मैं आपको हृदय से शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ कि आप अत्यंत भाग्यशाली हैं, क्योंकि आपने भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से श्रीमद् भगवद् गीता के अनमोल विचारों को सुनने और समझने का निर्णय लिया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस संदेश को शांत मन से सुनने और अंत तक समझने के बाद आपके विचारों और जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन अवश्य आएगा।

जो भी व्यक्ति श्रीमद् भगवद् गीता की शरण में जाता है और भगवान श्री कृष्ण द्वारा बताए गए मार्गदर्शन को अपनाता है, वह अपने सभी दुखों से मुक्त होकर सफलता और आनंद प्राप्त करता है। मित्रों, यदि आपको जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या है, या आपकी कोई इच्छा अधूरी है, तो गीता के इन 60 अनमोल वचनों को ध्यानपूर्वक सुनें और समझें। यह वचन न केवल आपकी इच्छाएँ पूरी करेंगे, बल्कि हर मुश्किल को आसान बना देंगे और आपके सभी दुखों का निवारण करेंगे।

गीता का यह ज्ञान अमृत के समान है, जो न केवल हमारे विचारों में बल्कि हमारे जीवन में भी एक नई ऊर्जा का संचार करता है। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि जो भी इन वचनों को ध्यानपूर्वक सुनेगा और उन्हें अपनाएगा, उसे अपनी हर समस्या का समाधान मिलेगा और वह अपनी सभी इच्छाएँ पूरी कर सकेगा।

इसलिए, इस ज्ञानवर्धक यात्रा को पूरा ध्यान और मन से सुनें। इस लेखका एक भी विचार मिस न करें और इसे अंत तक अवश्य पढ़े । तो आइए, भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए इन 60 अनमोल वचनों की दिव्य यात्रा की शुरुआत क्रमसः भाग १ ,२, ३, और ४ पढ़े ।

जय श्री कृष्णा!

Table of Contents

श्रीमद् भगवद् गीता का 31वां अनमोल वचन यह सिखाता है कि आपको वह नहीं करना चाहिए जो सब लोग कर रहे हैं, बल्कि वह करना चाहिए जो आपके लिए सही और उपयुक्त है।

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था, “हे अर्जुन, तेरा कर्तव्य वही है जो तुझे करना चाहिए, न कि वह जो दुनिया कर रही है। तू कभी भी दूसरों का अनुसरण करके अपना धर्म और कर्तव्य मत छोड़।” जब अर्जुन ने युद्ध से पीछे हटने की बात कही और संयासी बनने की इच्छा जताई, तो श्री कृष्ण ने स्पष्ट किया कि संयास लेना अर्जुन का धर्म नहीं है। अर्जुन एक क्षत्रिय है, और उसका कर्तव्य धर्म की रक्षा करना और अधर्म का नाश करना है।

इसी प्रकार, हर इंसान का अपना कर्तव्य और मार्ग होता है। हमें उस मार्ग पर नहीं जाना चाहिए, जहां भीड़ जा रही है, केवल इसलिए कि वह “ट्रेंड” में है या सब लोग वही कर रहे हैं। भीड़ का अनुसरण करने से आप अपनी पहचान खो सकते हैं।

अगर आप वही करेंगे जो आपकी प्रतिभा और आपके लिए सही है, तो आप भीड़ में भी अलग नजर आएंगे। ट्रेंड और फैशन का अनुसरण करने के बजाय, अपने धर्म, कर्तव्य, और उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करें। यह वचन हमें सिखाता है कि सही मार्ग का चुनाव ही सच्ची सफलता और संतोष का आधार है।

श्रीमद् भगवद् गीता का 32वां अनमोल वचन

यह सिखाता है कि आलस्य मनुष्य की सबसे बड़ी बाधा है। आलसी व्यक्ति कभी कुछ हासिल नहीं कर सकता। अधिकतर लोग केवल इच्छाओं और योजनाओं में उलझे रहते हैं—बड़ा घर, बड़ी गाड़ी, दुनिया घूमने की ख्वाहिश—but ये केवल सोचने से संभव नहीं होता। किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत और कर्म करना जरूरी है।

अगर आप चाहते हैं कि आपका शरीर फिट हो, तो एक्सरसाइज करना जरूरी है। अगर आप आलसी बनकर बैठे रहेंगे, तो न अच्छा शरीर मिलेगा और न अच्छा जीवन। आलस्य से आप न केवल अपने सपनों को खो देंगे, बल्कि जो आपके पास है, वह भी छिन जाएगा। इसलिए अगर जीवन में सफलता चाहिए, तो आलस्य को दूर करना अनिवार्य है।


श्रीमद् भगवद् गीता का 33वां अनमोल वचन

यह वचन सिखाता है कि बुरा इंसान अपनी बुराई कभी नहीं छोड़ता, चाहे आप उसके साथ कितना भी अच्छा क्यों न करें।

महाभारत में दुर्योधन का उदाहरण इसका प्रमाण है। एक बार पांडवों ने दुर्योधन की जान बचाई, लेकिन उसने हमेशा पांडवों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। यह वचन हमें यह शिक्षा देता है कि बुरे व्यक्ति के साथ अत्यधिक अच्छा बनने की कोशिश न करें। उसे उसके स्वभाव के अनुसार जवाब दें। जो जैसा है, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करें।


श्रीमद् भगवद् गीता का 34वां अनमोल वचन

यह वचन बताता है कि गरीबी और कठिनाइयाँ जीवन में ऐसे पाठ पढ़ाती हैं जो इंसान को अंदर से बदल देती हैं।

भगवान को अपना सबसे करीबी दोस्त बनाइए, क्योंकि जब पूरी दुनिया आपका साथ छोड़ देती है, तब परमात्मा ही आपके साथ होते हैं। सच्चे दोस्त वे होते हैं जो आपकी परवाह करते हैं और आपको प्रेरित करते हैं। मृत्यु के समय, आपके साथ केवल आपके कर्म ही होते हैं।

यह वचन हमें यह भी सिखाता है कि जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए। धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखना जरूरी है। अपने कर्मों पर ध्यान दें, क्योंकि आपका सबसे बड़ा मित्र आपकी आत्मा और मन है। जो व्यक्ति आत्मा और मन को अपना साथी बना लेता है, वह सही दिशा में आगे बढ़ता है।


श्रीमद् भागवत गीता का 35वां अनमोल वचन

यह वचन हमें बताता है कि बुरे समय को अच्छे समय में बदलने के लिए एक चीज को कभी नहीं छोड़ना चाहिए—आस्था और कर्म।

एक गरीब किसान की कहानी इसका उदाहरण है। किसान कठिन परिश्रम करता था और भगवान पर विश्वास रखता था। जब उसका बेटा बीमार पड़ा और इलाज के लिए पैसे नहीं थे, तो वह निराश हो गया। उसकी पत्नी ने उसे भगवान में विश्वास बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।

मंदिर में प्रार्थना के दौरान, एक दयालु सेठ ने उसकी समस्या सुनी और मदद के लिए ₹10,000 दिए। यह कहानी सिखाती है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की मदद किसी न किसी रूप में करते हैं।

इसका सार यह है कि जीवन में कभी भी आस्था और कर्म को मत छोड़िए। कठिन समय में धैर्य रखें, क्योंकि जब तक कर्म के परिणाम पूरे नहीं होते, तब तक समय आपके पक्ष में नहीं आता। लेकिन सच्ची मेहनत और विश्वास अंततः आपको सफलता तक पहुंचाते हैं।

श्रीमद्भागवत गीता के प्रेरणादायक वचन

36. आध्यात्मिक ज्ञान की महिमा

जीवन में सच्चा सुकून आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त होता है। यह ज्ञान मानसिक और आत्मिक रूप से हमें मजबूत बनाता है। ईश्वर पर विश्वास रखें और उनके उपदेशों का पालन करें। लोगों की बातों में पड़कर अपने आत्मविश्वास को कमजोर न करें। खुद पर भरोसा रखें और अपने प्रयासों से जीवन में आगे बढ़ें। बीते हुए समय की बुराइयों को याद करके दुखी होने से बेहतर है उनसे सीख लेकर वर्तमान को सुधारें और उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ें। कर्म करते जाएं और ईश्वर पर भरोसा रखें।

37. अकेलेपन का सत्य

यदि कभी जीवन में अकेला महसूस करें, तो यह सच्चाई स्वीकार करें कि आप अकेले आए थे और अकेले ही जाएंगे। इस संसार में कोई भी सदा के लिए अपना नहीं होता। यहां तक कि माता-पिता भी एक दिन साथ छोड़ देते हैं। ईश्वर ही सदा हमारे साथ रहता है, जो हमें कभी नहीं त्यागता। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हर प्राणी मेरा अंश है, और मैं किसी का साथ कभी नहीं छोड़ता। अकेलेपन से डरें नहीं, बल्कि गलत लोगों के साथ रहने से डरें। याद रखें, नासमझ लोगों के साथ रहने से अच्छा है कि आप अकेले रहें।

38. अभिमान का परिणाम

धन, पद, और शक्ति का अहंकार विनाश का कारण बनता है। दुर्योधन को अपने योद्धाओं, धन और शक्ति पर बहुत अभिमान था, लेकिन यही अभिमान उसके सर्वनाश का कारण बना। अपने संसाधनों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए करें, न कि उन्हें नीचा दिखाने के लिए। सच्ची सफलता विनम्रता में है, अहंकार में नहीं।

39. अच्छाई की सीमा

जीवन में अत्यधिक अच्छा बनना कई बार नुकसानदेह हो सकता है। पांडवों का धर्म के प्रति अत्यधिक समर्पण और अच्छाई ने उन्हें कई कष्ट दिए। आज के समय में अत्यधिक अच्छा बनने की कोशिश करने से लोग आपका उपयोग करते हैं। सच्चाई और अच्छे कर्म करें, लेकिन अपनी सीमाएं बनाएं। दुनिया की नजरों में अच्छा बनने के लिए नहीं, बल्कि अपनी नजर में सही बने रहें।

श्रीमद्भागवत गीता हमें सिखाती है कि आत्मज्ञान, संतुलन, और ईश्वर के प्रति समर्पण से जीवन को सार्थक और शांतिमय बनाया जा सकता है। जीवन में अच्छे कर्म और सच्चाई के साथ आगे बढ़ें, यही वास्तविक धर्म है।

श्रीमद्भागवत गीता के प्रेरणादायक वचन

40. सच पर जल्द भरोसा न करें

कभी भी आंखों से दिखाई देने वाली बातों पर तुरंत भरोसा न करें। कई बार जो हमें सच लगता है, वह भ्रम हो सकता है। इसलिए हर तथ्य की गहराई से जांच करें और जल्दबाजी में निर्णय लेने से बचें।

41. मुश्किल समय में धैर्य रखें

जीवन में कठिनाइयां आएंगी, लेकिन उनसे घबराना नहीं चाहिए। धैर्य और हिम्मत के साथ उनका सामना करें। एक राजा की कहानी है, जिसे उसके गुरु ने एक ताबीज दिया और कहा, “जब सबसे बुरा समय आए, तो इसे खोलकर पढ़ना।” जब राजा पर विपत्ति आई, उसने ताबीज खोला, जिसमें लिखा था, “यह समय भी गुजर जाएगा।” इस वचन से प्रेरणा लेकर उसने स्थिति को संभाला और अपना राज्य पुनः प्राप्त किया। कठिन समय हमेशा के लिए नहीं रहता। धैर्य और विश्वास से आप हर मुश्किल को पार कर सकते हैं।

42. शब्दों की मर्यादा रखें

बोलने से पहले अपने शब्दों को तोलें। महाभारत का युद्ध द्रौपदी और अन्य लोगों की वाणी के कारण हुआ। शब्द शस्त्र से भी अधिक घातक होते हैं; ये आत्मा को आहत कर सकते हैं। इसलिए हमेशा सोच-समझकर बोलें।

43. मनुष्य की स्वार्थपरता

आजकल इंसान ही इंसान का दुश्मन बन गया है। प्रतिस्पर्धा, लालच, और स्वार्थ ने मानवता को पीछे छोड़ दिया है। एक भिखारी और सेठ की कहानी इस बात को दर्शाती है कि आज के समय में लोग इंसानियत से दूर हो गए हैं। सेठ ने पानी के लिए मना कर दिया, क्योंकि वह “आदमी” के इंतजार में था। भिखारी ने कहा, “तुम खुद ही आदमी क्यों नहीं बन जाते?” यही सच्चाई है, हमें दूसरों की मदद के लिए पहले खुद इंसान बनना होगा।

44. बार-बार क्षमा करना सही नहीं

दुर्योधन को बार-बार क्षमा करने के कारण युधिष्ठिर और पांडवों को बड़े दुखों का सामना करना पड़ा। अगर कोई व्यक्ति बार-बार गलती करे, तो उसे माफ करना आपको और अधिक नुकसान पहुंचा सकता है। क्षमा का अर्थ मूर्ख बनना नहीं है। एक बार माफ करने के बाद भी सावधान रहें। भरोसा उन्हीं पर करें जो भरोसे के योग्य हों।

45. जन्म और मृत्यु का सत्य

श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, “मृत्यु और जन्म जीवन का अटल सत्य हैं। यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। जो होना है, उसे कोई रोक नहीं सकता, और जो नहीं होना है, उसकी चिंता करना व्यर्थ है। सत्य को स्वीकार करना ही बुद्धिमानी है।” वासना, क्रोध, और लालच को त्यागें, क्योंकि ये नरक के द्वार हैं। मोक्ष पाने के लिए अपने कर्तव्यों का निडरता से पालन करें और सत्य के मार्ग पर चलें।

श्रीमद्भागवत गीता हमें सिखाती है कि धैर्य, सत्य, और धर्म के मार्ग पर चलकर जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, धर्म और सत्य को कभी न छोड़ें।

Leave a Comment

Translate »
Senior Living Operators Pivoting for Growth Health Insurance for Seniors Above 60 Anemia in Aging: Symptoms, Causes & Questions